मोतियाबिंद क्या है
आंख का क्रिस्टलीय लेंस पूरी तरह से साफ व पारदर्शी होती है, जिसकी मदद से रेटिना पर सीधा प्रकाश पड़ता है और आप चीजों को स्पष्ट रूप से देख पाते हैं। हालांकि, कुछ स्थितियों में लेंस धुंधला पड़ जाता है, जिस कारण से रोशनी सीधी रेटिना तक नहीं पहुंच पाती है और हमें धुंधला दिखने लगता है। इस स्थिति को मोतियाबिंद (Cataracts) के नाम से जाना जाता है। मोतियाबिंद आमतौर पर शुरुआती चरणों में कोई गंभीर समस्या पैदा नहीं करता है, क्योंकि इसमें लेंस का छोटा सा हिस्सा ही प्रभावित होता है। हालांकि, जब धीरे-धीरे मोतियाबिंद गंभीर चरणों में आता है, तो धुंधलापन लेंस के अधिक हिस्सों में फैल जाता है और मरीजों को चीजें देखने में दिक्कत होने लगती है। मोतियाबिंद आमतौर पर दोनों आंखों को प्रभावित करता है, हालांकि, यह एक आंख से दूसरी आंख में नहीं फैलता। कुछ लोगों में मोतियाबिंद धीरे-धीरे गंभीर चरणों में आता है, जबकि अन्य लोगों को यह तीव्रता से प्रभावित करता है।
मोतियाबिंद के प्रकार
मोतियाबिंद के प्रमुख रूप से तीन प्रकार हैं –
- कोर्टिकल कैटरैक्ट्स – इस स्थिति में रोशनी से चमक ज्यादा लगने लगती है और साथ ही मरीज की प्रकाश सहन करने की क्षमता भी कम हो जाती है। उदाहरण के लिए रात को गाड़ी चलाते समय सामने वाली गाड़ियों की लाइट के कारण कुछ भी न देख पाना।
- पोस्टीरियर सबकैप्सूलर कैटरैक्ट्स – यह आमतौर पर यह आमतौर पर कम उम्र के लोगों (जैसे किशोर) को होता है और यह तेजी से बढ़ता है।
- न्यूक्लियर कैटरैक्ट्स – मोतियाबिंद के इस प्रकार में मरीज की दूर की चीजें देखने की क्षमता प्रभावित हो जाती है। न्यूक्लियर कैटरैक्ट्स धीरे-धीरे बढ़ता है।
मोतियाबिंद के लक्षण
मोतियाबिंद के दौरान विकसित होने वाले सबसे आम लक्षणों में निम्न शामिल हैं –
- धुंधला दिखना
- रंग फीके दिखना
- रात को देखने में कठिनाई
- चश्मे का नंबर बढ़ जाना
- दोहरी दृष्टि (हर चीज दो दिखाई देना)
- वस्तुओं की आकृति सही न दिखाई पड़ना
- रोशनी से अधिक चमक लगना
- ऐसा लगना जैसे चश्मे का लेंस गंदा हो गया है
मोतियाबिंद के कारण दृष्टि की क्षति बहुत धीरे-धीरे होती है और समय के साथ-साथ ही धुंधलापन व रंगों में फीकापन दिखने लगता है। मोतियाबिंद के मरीजों को अक्सर रात को गाड़ी चलाने में दिक्कत होने लगती है। हालांकि, मोतियाबिंद के कारण दृष्टि में क्षति की गंभीरता हर मरीज के अनुसार अलग-अलग हो सकती है।
डॉक्टर को कब दिखाएं
यदि मरीज को उपरोक्त में से कोई लक्षण होने लगा है या फिर किसी अन्य कारण से उन्हें लगता है कि वे मोतियाबिंद से ग्रस्त हो सकते हैं तो जल्द से जल्द नेत्र-विशेषज्ञ (Ophthalmologist) से संपर्क कर लेना चाहिए।
मोतियाबिंद के कारण
बढ़ती उम्र मोतियाबिंद के सबसे प्रमुख कारणों में से एक है, क्योंकि इसमें आंख का लेंस सख्त होकर धुंधला पड़ने लगता है। 40 साल की उम्र के बाद आंख में मौजूद प्रोटीन के गुच्छे बनने लगते है, जो लेंस में धुंधलापन का कारण बनते हैं। 65 से 74 साल की उम्र के लोगों में 20 प्रतिशत और जिनकी उम्र 74 ऊपर है उनमें 50 प्रतिशत लोग मोतियाबिंद से ग्रसित हो जाते हैं। इसके अलावा मोतियाबिंद के कुछ अन्य कारण भी हैं, जिनमें प्रमुख रूप से निम्न शामिल हैं –
- आंख में चोट लगना
- संक्रमण
- रेडिएशन के संपर्क में आना
- डायबिटीज
वहीं कुछ दुर्लभ मामलों में कुछ बच्चों को जन्म से ही मोतियाबिंद होता है।
मोतियाबिंद के जोखिम कारक
मोतियाबिंद से प्रमुख जोखिम कारकों में निम्न शामिल हैं –
- धूम्रपान करना
- शराब का अत्यधिक सेवन करना
- परिवार में पहले किसी को मोतियाबिंद होना
- धूप के संपर्क में अधिक आना
- अधिक स्टेरॉयड दवाएं लेना
- स्क्रीझोफ्रेनिया या बाइपोलर डिसऑर्डर की दवाएं लेना
- ट्रैंक्विलाइज़र या डाईयूरेटिक दवाएं लेना
- शरीर में पोषक तत्वों की कमी होना
- अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रहना
मोतियाबिंद की रोकथाम
निम्न बातों का ध्यान रखकर आंख में मोतियाबिंद विकसित होने से रोका जा सकता है –
- अधिक धूप के संपर्क में आने से बचने के लिए टोपी पहनें या छाते का उपयोग करें
- धूम्रपान व शराब का सेवन छोड़ दें
- आहार में पर्याप्त मात्रा में फल व सब्जियों को शामिल करें
मोतियाबिंद का निदान
मोतियाबिंद कई अलग-अलग कारणों से विकसित हो सकता है, इसलिए नेत्र विशेषज्ञ सबसे पहले मरीज के लक्षणों की जांच करते हैं और उससे लक्षणों से संबंधी कुछ प्रश्न भी पूछते हैं। इस दौरान आपको अलग-अलग दूरी से एक चार्ट दिखाया जाता है और आपको उसपर लिखे अक्षरों व रंगों की पहचान करने को कहा जाता है। इस चार्ट की मदद से यह पता लगाया जाता है कि आपकी नजर कितनी स्पष्ट है। मोतियाबिंद का पता लगाने के लिए डायलेटेड आई एग्जाम भी किया जाता है, जिसमें डॉक्टर एक विशेष दवा डालकर प्युपिल को फैला देते हैं और फिर माइक्रोस्कोप से जांच करते हैं। दवा डालने के कुछ घंटों बाद तक प्युपिल फैले हुए रहते हैं और इस दौरान रोशनी सहन करने की क्षमता कम हो जाती है। जब तक प्युपिल सामान्य आकार में न आ जाएं आपको गाड़ी चलाने या अन्य कोई मशीन ऑपरेट करने की सलाह नहीं दी जाती है।
मोतियाबिंद का इलाज
मोतियाबिंद का इलाज करने या उसके लक्षणों को कम करने के लिए अभी तक कोई ऐसी दवा नहीं बनी है और इससे हुए धुंधलेपन को हटाने का सर्जरी ही एकमात्र तरीका है। लेंस का धुंधलापन दूर करने के लिए कई सर्जिकल प्रक्रियाएं उपलब्ध हैं और अनेक पहलुओं पर विचार करके ही सर्जन इनमें से कोई एक प्रोसीजर चुनते हैं। ये सर्जरी कुछ इस प्रकार हैं –
- इंट्राकैप्सूलर कैटरैक्ट सर्जरी – इसमें सर्जरी की मदद से पूरे लेंस को ही हटा दिया जाता है। हालांकि, अब यह सर्जरी नहीं की जाती है।
- एक्सट्राकैप्सूलर कैटरैक्ट सर्जरी – इसमें लेंस के पिछले हिस्से को छोड़ दिया जाता है, ताकि वह इंट्राऑकुलर लेंस को सहारा प्रदान कर सके।
- फैकोएमूलसिफिकेशन – इसमें आंख में 2 एमएम का छोटा चीरा लगाया जाता है और उसकी मदद से लेंस का धुंधलापन हटा दिया जाता है।
- मोनो-फोकल – इस सर्जरी प्रोसीजर को अधिकतर मामलों के लिए नियमित रूप से उपयोग किया जाता है। यह ज्यादातर मामलों में दूरदृष्टि दोष का इलाज करता है और कुछ मामलों में निकट दृष्टि दोष के लक्षणों को भी इससे कम किया जा सकता है।
- मल्टीफोकल – इस प्रोसीजर की मदद से निकट व दूरदृष्टि दोष दोनों का इलाज किया जा सकता है। हालांकि यह प्रक्रिया सभी मरीजों के लिए उचित नहीं होती है।
- टोरिक आईओएल – इस प्रोसीजर की मदद से दृष्टिवैषम्य (Astigmatism) जैसी समस्याओं का इलाज किया जा सकता है।
- मल्टीफोकल टोरिक आईओएल – यह हाल ही में तैयार की गई एक नई तकनीक है जिसकी मदद से दृष्टिवैष्मय, निकट दृष्टि दोष और दूरदृष्टि दोष आदि का इलाज किया जा सकता है।
मोतियाबिंद की जटिलताएं
यदि मोतियाबिंद का समय पर इलाज न किया जाए तो लेंस का धुंधलापन और गंभीर हो सकता है और मरीज की दृष्टि पूरी तरह से प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा मोतियाबिंद से निम्न जटिलताएं हो सकती हैं –
- बार-बार चश्मे का नंबर बढ़ना
- रात को गाड़ी न चला पाना
- बारीक काम न कर पाना
- ग्लूकोमा
- आंख के अंदर सूजन आना
- आंख के अंदर स्थायी रूप से क्षति होना