आईवीएफ की ज़रुरत कब पड़ सकती है?

June 25, 2024by Mahima Aggarwal0

आज के समय में गर्भधारण के लिए अनेक तकनीकें उपलब्ध हैं, जिनमें से इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) एक महत्वपूर्ण और प्रभावी विधि है। आईवीएफ की ज़रूरत तब पड़ सकती है जब प्राकृतिक तरीकों से गर्भधारण संभव नहीं हो पाता। इसके अनेक कारण हो सकते हैं, जैसे निरुद्ध गर्भाशय नाल, शुक्राणु का निर्गुण होना, असफल नतीजे दूसरे फर्टिलिटी उपचारों से, अंडो की गुणवत्ता कम होना, और एन्डोमेट्रीओसिस की कुछ परिस्थितियाँ। इस लेख में हम इन कारणों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

निरुद्ध गर्भाशय नाल

निरुद्ध गर्भाशय नाल, जिसे अंग्रेजी में ‘फैलोपियन ट्यूब्स ब्लॉकेज’ कहा जाता है, गर्भधारण की राह में एक बड़ी बाधा होती है। गर्भाशय नालें अंडाणु को अंडाशय से गर्भाशय तक ले जाने का काम करती हैं। अगर ये नालें ब्लॉक हो जाती हैं, तो अंडाणु और शुक्राणु का मिलन नहीं हो पाता और निषेचन की प्रक्रिया बाधित हो जाती है। आईवीएफ इस स्थिति में एक प्रभावी उपचार है क्योंकि इसमें अंडाणु और शुक्राणु को शरीर के बाहर निषेचित किया जाता है और फिर भ्रूण को गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है, जिससे गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।

शुक्राणु का निर्गुण होना

पुरुषों में शुक्राणु की गुणवत्ता और मात्रा भी गर्भधारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कभी-कभी पुरुषों में शुक्राणु की संख्या कम होती है या उनकी गतिशीलता और संरचना में समस्या होती है, जिसे ‘मैल फैक्टर इन्फर्टिलिटी’ कहा जाता है। ऐसी स्थिति में, प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करना कठिन हो सकता है। आईवीएफ के माध्यम से, उच्च गुणवत्ता वाले शुक्राणुओं का चयन किया जाता है और अंडाणु के साथ निषेचित किया जाता है, जिससे स्वस्थ भ्रूण का निर्माण होता है और गर्भधारण की संभावना बढ़ती है।

असफल नतीजे दूसरे फर्टिलिटी उपचारों से

जब अन्य फर्टिलिटी उपचार, जैसे कि ओव्यूलेशन इंडक्शन, इंट्रायूटेरिन इंसमिनेशन (आईयूआई), और मेडिकेशन, असफल हो जाते हैं, तब आईवीएफ एक महत्वपूर्ण विकल्प बन सकता है। कई बार, इन उपचारों से सफलता नहीं मिलती और कपल्स को निराशा का सामना करना पड़ता है। ऐसे में, आईवीएफ एक अधिक सुनिश्चित और उच्च सफलता दर वाली विधि साबित होती है, जो कपल्स को माता-पिता बनने का मौका देती है।

अंडो की गुणवत्ता कम होना

महिलाओं में अंडो की गुणवत्ता उम्र बढ़ने के साथ कम हो सकती है। यह विशेष रूप से 35 वर्ष की उम्र के बाद अधिक स्पष्ट होता है। कम गुणवत्ता वाले अंडो से स्वस्थ भ्रूण का निर्माण कठिन हो जाता है और गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। आईवीएफ के माध्यम से, अंडो की गुणवत्ता की जांच की जाती है और उच्च गुणवत्ता वाले अंडो का चयन करके निषेचन की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है, जिससे स्वस्थ भ्रूण का निर्माण होता है और गर्भधारण की सफलता दर बढ़ती है।

एन्डोमेट्रीओसिस की कुछ परिस्थितियाँ

एन्डोमेट्रीओसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें गर्भाशय की अंदरूनी परत जैसी ऊतक गर्भाशय के बाहर बढ़ने लगती है। यह स्थिति दर्दनाक हो सकती है और गर्भधारण में बाधा डाल सकती है। एन्डोमेट्रीओसिस के कारण अंडाणु और शुक्राणु का मिलन कठिन हो जाता है, और भ्रूण का गर्भाशय में प्रत्यारोपण भी समस्याग्रस्त हो सकता है। आईवीएफ इन परिस्थितियों में एक प्रभावी उपचार है, क्योंकि यह सीधे अंडाणु और शुक्राणु को निषेचित करके भ्रूण का निर्माण करता है और फिर उसे गर्भाशय में प्रत्यारोपित करता है।

निष्कर्ष

आईवीएफ उन कपल्स के लिए एक आशा की किरण है जो विभिन्न कारणों से प्राकृतिक रूप से गर्भधारण नहीं कर पा रहे हैं। निरुद्ध गर्भाशय नाल, शुक्राणु का निर्गुण होना, असफल नतीजे दूसरे फर्टिलिटी उपचारों से, अंडो की गुणवत्ता कम होना, और एन्डोमेट्रीओसिस की कुछ परिस्थितियाँ आईवीएफ की ज़रूरत को जन्म देती हैं। आईवीएफ की प्रक्रिया जटिल और महंगी हो सकती है, लेकिन इसकी सफलता दर और वैज्ञानिक प्रगति ने इसे एक महत्वपूर्ण फर्टिलिटी उपचार बना दिया है। कपल्स को इस विकल्प के बारे में जानकारी होना महत्वपूर्ण है ताकि वे अपनी स्थिति के अनुसार सही निर्णय ले सकें और अपने परिवार को पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ा सकें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *